राष्ट्र-निर्माण में तिलक के स्वराज्य दर्शन की भूमिका
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2022-09-01
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सनातन हिन्दू सांस्कृतिक दर्शन के निष्णात महान लोकमान्य तिलक का "स्वराज्य दर्शन" तत्कालीन देश-काल, परिवेश और परिस्थितियों से प्रभावित था; क्योंकि एक निष्काम कर्मयोगी होने के कारण भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के प्रथम श्रेणी के नेत्रित्वकर्ताओं में उनका महत्वपूर्ण स्थान है। अतः उनका स्वराज्य दर्शन कोरे काल्पनिक आदर्श के स्थान पर उदात्त यथार्थवादी धरातल पर अवलम्बित है। सनातन हिन्दू सांस्कृतिक दर्शन तथा पाश्चात्य राष्ट्रवादी और प्रजातान्त्रिक विचारों से प्रभावित लोकमान्य के स्वराज्य का मूल 'अद्वैतवाद के तत्वमीमांसा' में वर्णित व्यक्ति के प्राकृतिक अधिकार और मानवीय समता की भावना से अभिप्रेरित है। भारत की परम्परागत ऊर्जा को आधुनिक राजनीतिक मूल्यों के साथ पिरो कर अभिजन और आमजन के मध्य सेतु निर्माता महानायक तिलक ने आध्यात्मिक भारतीयता को तात्कालिक सन्दर्भों के विराट अर्थ से जोड़ने के लिए परम्परागत प्रतीकों, नायकों और मिथकों का प्रयोग कर 'स्वराज्य' के महायज्ञ में जनऊर्जा को प्रज्ज्वलित करने की अद्भुत क्षमता प्रदर्शित की। राष्ट्रीय आन्दोलन को नया जीवन प्रदान करने के लिए तिलक ने 'गणपति उत्सव' और 'शिवाजी उत्सव' प्रारम्भ किए, साथ ही राष्ट्रवादियों का बाइबिल कहे जाने वाले 'गीता रहस्य' की रचना की। भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन के इतिहास में लोकमान्य तिलक ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीयों को 'स्वतन्त्रता की पवित्र भावना' के लिए प्रेरित किया। स्वराज्य में आध्यात्मिक अनिवार्यता निहित है, जो व्यक्ति को आन्तरिक आध्यात्मिक स्वतन्त्रता तथा विचारपरक आनन्द का अनुभव कराती है। राजनीतिक क्षेत्र में तिलक के विचारों का मूल बिन्दु स्वतन्त्रता की अवधारणा थी,
स्वतंत्रता की यह अवधारणा एक ओर तो वेदान्त दर्शन पर और दूसरी ओर मिल, बर्क, ग्रीन व विल्सन के पाश्चात्य राजनितिक विचारों पर आधारित थी। श्री तिलक के अनुसार "स्वतन्त्रता ही व्यक्ति की आत्मा का जीवन है" । उनके शब्दों में, "सृजनात्मकता की स्वायत्त शक्ति को ही स्वतन्त्रता कहा जा सकता है"; इसी 'स्वतन्त्रता' को श्री तिलक ने भारत के संदर्भ में 'स्वराज्य' कहा। सन् 1916 के कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में तिलक ने भारतीयों को स्वराज्य का मंत्र देते हुए कहा- "स्वराज्य भारतवासियों का जन्मसिद्ध अधिकार है।" इस प्रकार वर्तमान भारतीय परिवेश में लोकमान्य के 'स्वराज्य' की अवधारणा को अत्यंत विस्तीर्ण सन्दर्भों में प्रचारित किये जाने की आवश्यकता है, ताकि आधुनिक युवा पीढ़ी भौतिक सुखों के मकड़जाल से निकल कर अपनी स्वतंत्र सृजनात्मक शक्ति का राष्ट्रोत्थान में प्रयोग कर सके ।